अनन्त जीवन
बाइबल अनन्त जीवन की ओर एक स्पष्ट मार्ग को प्रस्तुत करती है। सबसे पहले, हमें यह जान लेना चाहिये कि हमने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया है: "इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित है" (रोमियों 3:23)। हम सबने ऐसे कार्य किये हैं जो परमेश्वर को अप्रसन्न करते हैं, जो हमें सजा प्राप्त होने का पात्र बनाते हैं। क्योंकि हमारे सारे पाप आखिरकार एक सनातन परमेश्वर के विरुद्ध हैं, इसलिए केवल एक अनन्तकालीन दण्ड ही पर्याप्त है। "पाप की मज़दूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है" (रोमियों 6:23)।
परन्तु फिर भी, यीशु मसीह, जो पाप रहित था (1पतरस 2:22) परमेश्वर का अनन्त पुत्र एक मनुष्य बना (यूहन्ना 1:1; 14) और हमारे जुर्माने को चुकाने के लिये मर गया। "परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रकट करता है, कि जब हम पापी ही थे, तभी मसीह हमारे लिये मरा" (रोमियों 5:8)। यीशु मसीह क्रूस पर मरा (यूहन्ना 19:31-42), उस दण्ड को उठाया जिसके पात्र हम थे (2 कुरिन्थियों 5:21)। तीन दिन पश्चात् वह मरे हुओं में से (1कुरिन्थियों 15:1-4) पाप तथा मृत्यु के ऊपर अपनी विजय को प्रमाणित करते हुए जी उठा। "जिसने यीशु मसीह के मरे हुओं में से जी उठने के द्वारा, अपनी बड़ी दया से हमें जीवित आशा के लिये नया जन्म दिया" (1पतरस 1:3)।
विश्वास के द्वारा, हमें मसीह के सम्बन्ध में अपने मनों को परिवर्तित कर लेना चाहिए – कि वह कौन है, उद्धार के लिए उसने क्या, और क्यों किया (प्रेरितों के काम 3:19)। यदि हम उसमें अपने विश्वास को रखते हैं, उसकी क्रूस पर हमारे पापों का दाम चुकाने के लिए हुई मृत्यु पर विश्वास करते हुए तो हम क्षमा किए जाएंगे और हम स्वर्ग में अनन्त जीवन की प्रतिज्ञा को प्राप्त करेंगे। "क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा, कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उसपर विश्वास करे, वह नष्ट न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए" (यूहन्ना 3:16)। "यदि तू अपने मुँह से 'यीशु को प्रभु' जानकर अंगीकार करें और अपने मन से विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा (रोमियों 10:9)।
क्रूस पर यीशु के समाप्त किये गए कार्य पर विश्वास ही केवल अनन्त जीवन का सच्चा मार्ग है! "क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है - और यह तुम्हारी ओर से नहीं वरन् परमेश्वर का दान है - और न कमजोरी के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे" (इफिसियों 2:8-9)।
यदि आप यीशु मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण करना चाहते हैं, तो यहाँ पर एक सरल प्रार्थना दी गई है। स्मरण रखें, इस प्रार्थना या कोई अन्य प्रार्थना का बोलना आपको बचा नहीं सकता है। केवल यीशु में विश्वास ही है जो आपको पाप से बचा सकता है। यह प्रार्थना उसमें अपने विश्वास को व्यक्त करने और आपके लिए उद्धार का प्रबन्ध करने के लिए धन्यवाद देने का एक तरीका मात्र है।
प्रार्थना: "हे, परमेश्वर, मैं जानता हूँ कि मैंने आप के विरुद्ध पाप किया है, और मैं सजा का पात्र हूँ। परन्तु यीशु मसीह ने उस सजा को स्वयं पर ले लिया जिसके योग्य मैं था ताकि उसमें विश्वास करने के द्वारा मैं क्षमा किया जा सकूँ। मैं उद्धार के लिए आपमें अपने विश्वास को रखता हूँ। आपके अद्भुत अनुग्रह तथा क्षमा – जो अनन्त जीवन का उपहार है, के लिए मैं आपका धन्यवाद करता हूँ! आमीन।"
जो कुछ आपने यहाँ पढ़ा है क्या उसके कारण आपने मसीह के पीछे चलने के लिए निर्णय लिया है?
संसाधन डाउनलोड्स
कृपया मुफ्त संसाधनों का आनंद लें
मुफ्त डाउनलोड करें -जॉइस मेयेर की पुस्तके
१- जीने की एक नहीं राह
२- उनसे कहो येशु उन्हें प्यार करता है
३- क्यों परमेश्वर क्यों
मैंने अभी अभी अपना विश्वास यीशु में रखा है… अब आगे क्या है?
धाई हो! आपने एक जीवन-बदलने वाला निर्णय लिया है! शायद आप यह पूछ रहे हैं, "अब आगे क्या है? परमेश्वर के साथ मैं अपनी यात्रा कैसे आरम्भ करूँ?" निम्नलिखित पाँच कदम आपको बाइबल से निर्देश देंगे।
1. यह सुनिश्चित करें कि आप उद्धार को समझते हैं।
1यूहन्ना 5:13 हमें¬ बताता है कि, "मैं ने तुम्हें, जो परमेश्वर के पुत्र के नाम पर विश्वास करते हैं, इसलिए लिखा है कि तुम जानो कि अनन्त जीवन तुम्हारा है।" परमेश्वर चाहता है कि हम उद्धार के अर्थ को समझें। परमेश्वर हमसे चाहता है कि हमें इस निश्चितता का आत्मविश्वास हो कि हम बचा लिए गए हैं। संक्षेप में, आइये हम उद्धार की मुख्य बातों को देख लें
(क) इसलिए कि सबने पाप किया है। जो कुछ हमने किया है वह परमेश्वर को अप्रसन्न करने वाला है (रोमियों 3:23)।
(ख) अपने पापों के कारण, हम परमेश्वर से अनन्तकाल के लिए अलग होने के दण्ड के पात्र हैं (रोमियों 6:23)।
(ग) हमारे पापों के दण्ड की कीमत चुकाने के लिये यीशु क्रूस के ऊपर मर गया (रोमियों 5:8, 2कुरिन्थियों 5:21)। यीशु हमारे स्थान पर, उस दण्ड को लेते हुए मरा जिसके पात्र हम थे। उसके जी उठने ने यह प्रमाणित कर दिया है कि यीशु की मृत्यु हमारे पापों का दाम चुकाने के लिए पर्याप्त थी।
(घ) परमेश्वर उन सबको क्षमा तथा उद्धार प्रदान करता है जो अपना विश्वास यीशु में - उसकी मृत्यु के ऊपर यह विश्वास रखते हुए करते हैं कि वह हमारे पापों का दाम चुकाने के लिए थी (यूहन्ना 3:16, रोमियों 5:1, रोमियों 8:1)।
यह उद्धार का संदेश है! यदि आपने अपने विश्वास को यीशु मसीह पर अपने उद्धारकर्ता के रूप में रखा है, तो आप बचा लिए गए हैं! आपके सारे पाप क्षमा कर दिए गए हैं और परमेश्वर आपको कभी भी न तो छोड़ने या न ही त्यागने की प्रतिज्ञा करता है (रोमियों 8:28-29, मत्ती 28:20)। स्मरण रखें, यीशु मसीह में आपका उद्धार सुरक्षित है (यूहन्ना 10:28-29)। यदि आप अपने उद्धारकर्ता के रूप में केवल यीशु पर ही भरोसा रखते हैं, तो आप आश्वस्त हो सकते हैं कि स्वर्ग में आप परमेश्वर के साथ अनन्तकाल के लिए रहेंगे!
2. एक अच्छी कलीसिया की खोज करें जो बाइबल की शिक्षा देती हो।
कलीसिया को एक गिरजा या चर्च अर्थात् भवन के रूप में न सोचें। कलीसिया तो लोग होते हैं। यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि यीशु में विश्वास करने वाले एक दूसरे के साथ संगति रखें। यह कलीसिया के प्राथमिक उद्देश्यों में से एक है। अब जबकि आपने अपने विश्वास को यीशु मसीह में रख दिया है, तो हम आपको अत्यधिक जोर देकर प्रोत्साहन देते हैं कि आप अपने क्षेत्र में एक बाइबल-आधारित विश्वासी कलीसिया की खोज कर लें और इसके पास्टर से बात करें। यीशु मसीह में अपने नए विश्वास के बारे में उसको परिचित कराएं।
कलीसिया का एक दूसरा उद्देश्य बाइबल की शिक्षा देना है। आप परमेश्वर के निर्देशों को अपने जीवन में कैसे लागू करना सीख सकते हैं। बाइबल को समझना एक सफल और सामर्थी मसीही जीवन यापन करने की कुँजी है। 2 तीमुथियुस 3:16-17 कहता है कि, "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धार्मिकता की शिक्षा के लिए लाभदायक है। ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिए तत्पर हो जाए।"
कलीसिया का तीसरा उद्देश्य आराधना है। परमेश्वर के सभी किए हुए कार्यों के लिए धन्यवाद देना आराधना है! परमेश्वर ने हमें बचाया है। परमेश्वर हमसे प्रेम करता है। परमेश्वर हमारे लिए सभी वस्तुओं का प्रबन्ध करता है। परमेश्वर हमारा मार्गदर्शन करता और हमें निर्देश देता है। हमें क्यों नहीं उसका धन्यवाद करना चाहिए? परमेश्वर पवित्र, धर्मी, प्रेमी, दयालु और अनुग्रह से भरा हुआ हैं। प्रकाशितवाक्य 4:11 घोषणा करते हैं कि, "हे हमारे प्रभु और परमेश्वर, तू ही महिमा और आदर, और सामर्थ्य के योग्य है, क्योंकि तू ही ने सभी वस्तुएँ सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं और सृजी गईं।
3. परमेश्वर पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए प्रतिदिन समय निकालें।
हमारे लिए प्रतिदिन परमेश्वर पर ध्यान केन्द्रित करना अति महत्वपूर्ण है। कुछ लोग इसे "मौन समय" कहते हैं। अन्य लोग इसे "भक्तिमनन" कहते हैं, क्योंकि यह ऐसा समय होता है जब हम स्वयं को परमेश्वर के प्रति समर्पित करते हैं। कुछ लोग इस समय को प्रातःकाल में अलग करते हैं, जबकि कुछ लोग इसके लिए सायंकाल के समय को प्राथमिकता देते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप इस समय को क्या कहते हैं और इसे कब करते हैं। जो बात महत्वपूर्ण है वह यह है कि आप नियमित रूप से परमेश्वर के साथ समय व्यतीत करें। कौन सी बातें मिलकर परमेश्वर के साथ हमारे समय को बनाती हैं?
(क) प्रार्थना – प्रार्थना सरल तरीके से परमेश्वर से बात करना है। अपनी चिंताओं तथा समस्याओं के विषय में परमेश्वर से बात करें। परमेश्वर से आपको ज्ञान और मार्गदर्शन देने के लिए कहें। अपनी आवश्यकताओं की प्राप्ति के लिए परमेश्वर से कहें। परमेश्वर को बताएं कि आप उससे कितना अधिक प्रेम करते हैं, और जो कुछ वह आपके लिये करता है उसके लिए आप उसको कितना सराहते हैं। इन्हीं सब बातों को प्रार्थना कहते हैं।
(ख) बाइबल का पठन् करना – कलीसिया में, सन्डे स्कूल, और/या बाइबल अध्ययन की कक्षाओं में बाइबल की शिक्षा लेने के अतिरिक्त आपको स्वयं के लिये भी बाइबल का पठन् करने की आवश्यकता है। बाइबल में एक सफल मसीही जीवन यापन करने के लिये वह सारी सामग्री दी गई है जिसे आपको जानने की आवश्यकता है। इसमें परमेश्वर का वह मार्गदर्शन दिया गया है कि कैसे सही निर्णयों को लिया जाए, कैसे परमेश्वर की इच्छा को जानें, दूसरों की देखभाल कैसे करें और आत्मिक विकास कैसे करें। बाइबल हमारे लिए परमेश्वर का वचन है। हम अपने जीवन को आवश्यक रूप से किस तरीके से यापन करें इसके लिए बाइबल परमेश्वर की निर्देश पुस्तिका है जिस से कि वह प्रसन्न हो जाए और हम सन्तुष्टि पायें।
4. ऐसे लोगों से सम्बन्ध विकसित करें जो आपकी आत्मिक सहायता कर सकते हैं।
1कुरिन्थियों 15:33 हमें बताता है कि, "धोखा न खाना: 'बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।'" बाइबल हम पर पड़ने वाले "बुरे" लोगों के प्रभाव के बारे में दी हुई चेतावनियों से भरी पड़ी है। पापपूर्ण गतिविधियों में संलग्न लोगों के साथ समय व्यतीत करना हमें भी उन गतिविधियों के द्वारा परीक्षा में डाल देने का कारण बन जाता है। हम जिन लोगों के आस पास हैं उनका चरित्र हमारे ऊपर भी अपनी "छाप" छोड़ देता है। इसीलिये यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि हम ऐसे लोगों को स्वयं के चारों ओर रखें¬ जो प्रभु से प्रेम करते और उसके प्रति समर्पित हों।
एक या दो मित्रों को, शायद अपनी कलीसिया में से खोजने का प्रयास करें, जो आपकी सहायता कर सकते हों और आपको प्रोत्साहन दें (इब्रानियों 3:13; 10:24)। अपने मित्रों से कहें कि वे आपके खाली समय, आपकी गतिविधियों और परमेश्वर के साथ आपकी चाल के सम्बन्ध में आपको जवाबदेह बनाए रखें। उनसे पूछें कि क्या आप भी उनके लिए वैसा ही कर सकते हैं। इसका यह अर्थ नहीं है कि आपको अपने उन सभी मित्रों को छोड़ना होगा जो यीशु को अपने उद्धारकर्ता के रूप में नहीं जानते हैं। उनके मित्र निरन्तर बने रहें और उनसे प्रेम रखें। बस सरलता से उन्हें जानने दें कि यीशु ने आपके जीवन को बदल दिया है और अब आप उन सभी कार्यों को नहीं कर सकते जो पहले किया करते थे। परमेश्वर से कहें कि वह आपको यीशु के बारे में अपने मित्रों को बताने के लिए अवसर प्रदान करे।
5. बपतिस्मा लें।
बहुत से लोगों को बपतिस्मा के बारे में भ्रम है। शब्द "बपतिस्मा" का अर्थ पानी में डुबकी लगाना है। बपतिस्मा यीशु में अपने नए विश्वास और उसका अनुसरण करने के आपके समर्पण को सार्वजनिक तौर पर घोषित करने का एक बाइबल आधारित तरीका है । पानी में डुबकी लगाने की क्रिया यह दर्शाती है कि हम यीशु के साथ गाड़े गए हैं। पानी में से बाहर आने की क्रिया यीशु के जी उठने का चित्रण है। बपतिस्मा लेने से स्वयं को यीशु की मृत्यु, उसके गाड़े जाने और जी उठने के साथ पहचान कराना है (रोमियों 6:3-4)।
बपतिस्मा वह नहीं है जो आपको बचाता है। बपतिस्मा आपके पापों को नहीं धोता है। बपतिस्मा तो बस केवल आज्ञाकारिता का एक कदम, उद्धार के लिए केवल मसीह में ही आपके विश्वास की एक सार्वजनिक घोषणा है। बपतिस्मा इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि यह – मसीह पर आपके विश्वास और उसके प्रति आपके समर्पण की सार्वजनिक घोषणा के लिए आज्ञाकारिता का एक कदम है। अगर आप बपतिस्मा लेने के लिये तैयार हैं तो आपको किसी पास्टर से बात करनी चाहिए।