
7. इस्राएली राष्ट्र किस तरह से परमेश्वर की योजना में है - 2

साप्ताहिक पठन पाठ – उत्पत्ति, अध्याय 21-23; लूका, अध्याय 22-24
पुराने और नए नियम के बीच
70 वर्ष की बन्धुवाई के पश्चात्यहूदी बाबुल से इस्राएल देश को आ गए थे। भविष्यद्वक्ताओं से प्रोत्साहित किए जाने पर उन्होंने यरूशलेम में यहोवा के मन्दिर को फिर से बना दिया। पुराने नियम की अन्तिम तीन पुस्तकें हाग्गै, जकर्याह और मलाकी उन्हीं दिनों में लिखी गई थी। तब चार सौ वर्ष का एक लम्बा काल रहा, जिसमें यहूदियों को यहोवा परमेश्वर से कोई सीधा सन्देश नहीं मिला। आमोस भविष्यद्वाक्ता ने इस समय की भविष्यद्वाणी की थी।
‘परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, “देखो, ऐसे दिन आते हैं, जब मैं इस देश में महँगी करूँगा; उस में न तो अन्न की भूख और न पानी की प्यास होगी, परन्तु यहोवा के वचनों के सुनने ही की भूख प्यास होगी।”’ (आमोस 8:11)
यह चार सौ वर्षों का काल पुराने नियम की अन्तिम पुस्तक और नया नियम की पहली पुस्तक के बीच में आता है। तो इसमें कोई आश्चर्य नही कि जब यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला आया, तो उस समय लोगों के बीच बहुत हलचल थी। सैकडों वर्षो की खामोशी के बाद परमेश्वर यहोवा ने फिर से अपने लोगों से बात की।
सबसे महान्यहूदी
परन्तु यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले को परमेश्वर यहोवा द्वारा किसी ऐसे के लिए मार्ग तैयार करने के लिए भेजा गया था, जो यूहन्ना से भी महान था। परमेश्वर अपने ही पुत्र को हम लोगो को बचाने के लिए भेजने वाला था। इसलिए इस्राएल देश में लगभग दो हजार वर्ष पूर्व प्रभु यीशु मसीह का जन्म हुआ। कभी कभी हम भूल जाते है कि प्रभु यीशु मसीह एक यहूदी थे।
आप जानते हैं कि उनके साथ क्या घटना घटी। उनके वचनों को सुनने और उसके अद्भुत (आश्चर्य) कर्मो को, जो उसने किए, देखने के बाद भी यहूदियों ने उसे ग्रहण नहीं किया। उन्होंने उसे क्रूस पर चढाने के लिए पिलातुस को उकसाया। जब पिलातुस ने कहा ‘मैं उस धर्मी के लहू से निर्दोष हूँ,’ यहूदियों ने उत्तर दिया कि, ‘इसका लहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो!’ (मत्ती 26:24-25)
वे इससे बड़ा और कोई दूसरा पाप नहीं कर सकते थे। उन्होंने परमेश्वर के पुत्र का निर्दोष लहू बहाया। इस सब के बावजूद भी प्रेरितों के सामर्थी प्रचार के द्वारा परमेश्वर ने उन्हें फिर एक मौका दिया। उनमें से अधिकांश ने परमेश्वर के दया के इस दान को अस्वीकार कर दिया और इसलिए उनको दंड दिया जाना था। यह एक भयानक दण्ड था।
अनेक लोग बिना घर के
चालीस वर्ष बाद रोमियों की सेना आयी और उन लोगों के साथ और उनके बच्चों के युद्ध किया। (आपको याद है कि उन्होंने कहा था कि, "इसका लहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो।") यह यहूदियों के लिए भयानक दुख का समय था। इस युद्ध का डर इतिहास के सबसे डरावने युद्धों में से एक है। रोमियों ने नगर (यरूशलेम) पर कब्जा कर लिया और जो यहूदी बचे रहे वे पृथ्वी के सब देशों में यहाँ वहाँ तितर बितर हो गए।
ईश्वर ने यहूदियों को बहुत पहले से ही चेतावनी दी थी कि यदि उन्होंने उसके मार्गो को छोड़ तो ऐसा उनके साथ होगा।
व्यवस्थाविवरण के अध्याय 28 और उसके 64 पद में हम पढ़ते है कि, ‘यहोवा तुझ को पृथ्वी के इस छोर से लेकर उस छोर तक के सब देशों के लोगों में तितर बितर करेगा।’ (व्यवस्थाविवरण 28:64)
और इसलिए दो हजार वर्षो तक यहूदियों का अपना खुद का देश नहीं था। इस से भी बद्तर यह कि वे कई विकट पीडाओं और भयंकर क्लेशों से ग्रसित रहे और व्यवस्थाविवरण में बताए हुए भयंकर श्राप उन पर लाए गये। इनमें से कुछ भयंकर यातनाओं की घटनायें तो आज भी लोगों को याद है। हममें से बहुतो का हिटलर द्वारा यहूदियों को दी गयी यातनाओं की घटना याद हो सकती है जिसमें 60 लाख से भी अधिक यहूदि बेरहमी से मार डाले गये और इस घटना ने दुनिया को हिला दिया। फिर से हम व्यवस्थाविवरण 28 और उसके 34 से 67 पदों को पढ़े और आपको आश्चर्य होगा कि ये शब्द जो मूसा द्वारा तीन हज़ार वर्ष पूर्व लिखे गए, इनमें लिखी बामें हमारे समय में पूरी हुयी।
यह एक दुःखद सत्य कथा है और इसका अभी तक अन्त नहीं हुआ है। हम अवश्य ही प्रसन्न होते हैं जब परमेश्वर के वचन से पढ़ते हैं कि अन्त सुखी तथा आनन्दमय होगा।
अन्त में अपने देश को वापिसी
यिर्मयाह के अध्याय 30 और पद 11 में यहूदियों के लिए परमेश्वर के वचनों को पढ़िए ‘इसलिये मैं उन सब जातियों का अन्त कर डालूँगा, जिनमें मैं ने उन्हें तितर-बितर किया है, परन्तु तुम्हारा अन्त न करूँगा। तुम्हारी ताड़ना मैं विचार करके करूँगा, और तुम्हें किसी प्रकार से निर्दोष न ठहराऊँगा।’ (यिर्मयाह 30:11)
फिर से यिर्मयाह के अध्याय 31 और उसके 10 से 11 पद में हम पढ़ते हैं, ‘जिसने इस्राएलियों को तितर-बितर किया था, वही उन्हें इकट्ठे भी करेगा, और उनकी ऐसी रक्षा करेगा जैसी चरवाहा अपने झुण्ड की करता है। क्योंकि यहोवा ने याकूब को छुड़ा लिया, और उस शत्रु के पंजे से जो उस से अधिक बलवन्त है, उसे छुटकारा दिया है।’ (यिर्मयाह 31:10-11)
और अब लगभग दो हजार वर्ष पश्चात्, परमेश्वर (यहोवा) इस्राएल को इकट्ठा कर रहा है। 1917 में बेलफोर घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किया गया। यह प्रतिज्ञा पत्र था कि ब्रिटिश, पलिस्तीन (जो अब इस्राएल कहलाता है) को यहूदियों का राष्ट्र बनायेंगे।
और उस समय के बाद यहूदी लगातार बड़ी संख्या में इस्राएल में जा रहे है हालांकि ब्रिटेन अपने वायदें के अनुसार हमेशा उनकी सहायता नही की।
1948 में इस ओर एक और कदम बढा जब इस्राएल राष्ट्र का गठन किया गया।
यरूशलेम - भविष्य में संसार की राजधानी
आज मध्य पूर्व देशों में आज अशान्ति है। एक छोटे से यहूदी राष्ट्र को अपने अस्तित्व के लिये बड़े विरोधियों से लडाईयाँ लडनी हैं। आज भी शक्तिशाली और सशस्त्र शत्रुओ से घिरे होने कारण उसका भविष्य अधंकारमय प्रतीत होता है। परन्तु यिर्मयाह के अध्याय 30 और उसके सातवे पद में हम पढ़ते है कि, ‘... वह याकूब के संकट का समय होगा; परन्तु वह उस से भी छुड़ाया जाएगा।’ (यिर्मयाह 30:7)
आज हम अखबार पढ़ते है तो देखते है कि वो दिन बहुत दूर नहीं कि जब इस युद्ध का सबसे बड़ा अन्तिम दिन आयेगा और इस्राएल में यहूदी एक निराशाजनक स्थिति में होंगे।
और उस समय प्रभु यीशु मसीह पुन: वापिस आयेंगे और वे इस्राएल देश को बचायेंगे और अन्त में यहूदी उसको पहचानेगें और उसको स्वीकार करेंगे।
भविष्यद्वक्ता जकर्याह हमें बताता है कि, ‘... तब वे मुझे ताकेंगे अर्थात्जिसे उन्होंने बेधा है, और उसके लिये ऐसे रोएँगे जैसे एकलौते पुत्र के लिए रोते-पीटते हैं।’ (जकर्याह 12:10)
राजा प्रभु यीशु मसीह की अधीनता में यहूदी राज्य संसार में सबसे ऊँचा किया गया राज्य होगा। और जकर्याह की भविष्यवाणी पूरी होगी जो वह जकर्याह 8:22-23 में बताता है कि, ‘बहुत से देशों के वरन्सामर्थी जातियों के लोग यरूशलेम में सेनाओं के यहोवा को ढूँढ़ने और यहोवा से विनती करने के लिये आएँगे। सेनाओं का यहोवा यों कहता है उस दिनों में भाँति भाँति की भाषा बोलनेवाली सब जातियों में से दस मनुष्य, एक यहूदी पुरूष के वस्त्र की छोर को यह कहकर पकड़ लेंगे, “हम तुम्हारे संग चलेंगे, क्योंकि हम ने सुना है कि परमेश्वर तुम्हारे साथ है।”’ (जकर्याह 8:22-23)
सहायता के लिए एक छोटी सूची
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3500 वर्ष पूर्व परमेश्वर (यहोवा) यहूदियों को मिस्र से बाहर लाया। उसने उन्हें रहने के लिए इस्राएल देश दिया और उन्हें अपने मार्गों (विधियों) को सिखाया।
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यहूदियों ने परमेश्वर (यहोवा) के बताए मार्गों को छोड़ दिया। यहूदियों ने अपने पडोसी राष्ट्रो को अपने ईश्वर के द्वारा बताये गये जीवन के आचरण को ना दिखाकर उन चरित्रहीन लोगों का अनुसरण करने लगे।
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अन्त में 2500 वर्ष पूर्व परमेश्वर (यहोवा) ने उन्हें बन्धुवाई में भेजकर दण्ड दिया। 70 वर्षो के बाद यहुदा का दक्षिणी राज्य इस्राएल देश को वापिस लाया गया परन्तु वे तब भी यहोवा परमेश्वर की आज्ञाओं का उल्लघन करते रहे।
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2000 वर्ष पूर्व यीशु के क्रूस पर चढ़ाए जाने के बाद, यहूदी देश से बाहर निकाल दिए गए। लगभग 2000 वर्ष तक वे बिना घर के थे, और उन पर सताव, अत्याचार किया गया।
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आज, परमेश्वर यहोवा फिर से उन्हें इस्राएल देश वापिस ला रहा है और शीघ्र ही उन्हें सब राष्ट्रों की ‘पूँछ नहीं, किन्तु सिर ही ठहराएगा।’ (व्यवस्थाविवरण 28:13)
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१- जीने की एक नहीं राह
२- उनसे कहो येशु उन्हें प्यार करता है
३- क्यों परमेश्वर क्यों